एक आदमी था जो कॉन्वेंट स्कूल में पीरियड और छुट्टी का घंटा बजाता था.... टन..टन..टन..टन..टन..
एक दिन स्कूल के नए प्रिंसिपल की नज़र उस पर गयी तो उससे पूछ बैठे उसके बारे में...कितना पढ़े लिखे हो जी ??
आदमी ने बड़े मासूमियत से कहा...साहब, अनपढ़ हूँ ।
प्रिंसिपल को ये जानकर हैरत हुई कि उनके इस प्रतिष्ठित स्कूल का घंटा बजाने वाला कर्मचारी अनपढ़ है ।
उन्होंने कहा कि ये नही हो सकता और फ़िर उस घंटा बजाने वाले को स्कूल से निकाल दिया गया।
अब वो बेचारा क्या करे , कुछ काम नही , भूखे मरने की नौबत, तो किसी ने उसपर दया करके सलाह दी कि वहाँ उस रास्ते पर समोसा बेचो , कुछ तो कमाई होगी ।
फ़िर उसने समोसे बेचना शुरू किया ।
ऊपरवाले की कृपा रही और उसकी जीतोड़ मेहनत कि दुकान चल निकली ।
खोमचे से गुमटी हुआ , गुमटी से बड़ा दुकान , फिर बाजार की सबसे फेमस दुकान ।
जब उसका धंधा आगे बढा तो उसने अपने बच्चों को भी इस काम मे लगा कर और दूसरे धंधे आजमाए ।
आगे चलकर वो शहर का जाना माना सेठ बन गया ।उसके कई प्रतिस्ठान हो गए ।
उसकी ख्याति सुन एक पत्रकार आया उसका इंटरव्यू लेने ।
बाकी बातों को पूछने के बाद उसने पूछा कि आप कहाँ तक पढ़े हैं ।
पत्रकार को भी ये जानकर बड़ी हैरत हुई कि इतना बडा सेठ तो बिलकुल अनपढ़ है ।
पत्रकार ने कहा कि आप नही पढ़े लिखे हैं फिर भी इतना बड़ा ब्यापार किए , इतने सफल है ।
मैं सोच रहा हूँ कि अगर आप पढ़े होते तो क्या कर रहे होते ।
सेठ ने कहा - स्कूल में घंटा बजा रहा होता ।
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मंज़िल से आगे बढ़कर मंज़िल तलाश कर...
मिल जाये तुझको दरिया तो समन्दर तलाश कर...!!
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